कम्प्यूटर की उत्पत्ति एवं विकास(HISTORY OF COMPUTER)


अध्याय-2
कम्प्यूटर की उत्पत्ति एवं विकास
[COMPUTER'S EXISTENCE AND DEVELOPMENT]
 कम्प्यूटर का इतिहास
हालाकि आधुनिक कम्प्यूटरों को अस्तित्व में आये हुए मुश्किल से 50 वर्ष ही हुए हैं. लेकिन उनके विकास का इतिहास बहुत पुराना है । कम्प्यूटर का जो रूप हम आजकल देख रहे हैं, वह अचानक ही प्राप्त नहीं हुआ, बल्कि यह हजारों वर्षों की वैज्ञानिक खोजों का फल है।
 जबसे मनुष्य ने गिनना सीखा है, तभी से उसका यह प्रयास रहा है कि गणना करने में सहायता करने वाले यन्त्र का निर्माण किया जाए। संख्या पद्धति (Number System) के प्रयोग तथा भारतीय गणितज्ञों द्वारा ‘शन्य' का आविष्कार किये जाने के बाद मानव के लिए संख्याओं का महत्त्व बहुत बढ़ गया था,
गणना में सहायक यन्त्रों की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी। इसके परिणामस्वरूप सबसे पहले गिनतारा (Abacus) अस्तित्व में आया और बाद में भी कई यन्त्रों का निर्माण किया गया। इनका संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है

(i) गिनतारा (Abacus)—यह सबसे पहला और सबसे सरल यन्त्र है जिसका प्रयोग गणना करने में सहायता के लिए किया गया था। इसका इतिहास | 5000 वर्ष से भी ज्यादा पुराना है। ईसा पूर्व 3500 से 3000 में चीन में इसका व्यापक उपयोग होने के प्रमाण प्राप्त हुए हैं। आश्चर्य की बात यह है कि गिनतारा आजकल भी अपने प्रारिम्भक रूप में ही रूस, चीन, जापान, पर्वी एशिया के देशों तथा भारत में भी कुछ स्कूलों में प्रयोग किया जाता है।

(ii) नापयरा बान (Napier's Bones)—स्कॉटलैण्ड के गणितज्ञ जॉन नेपियर ने सन् 1617 में ऐसी आयताकार पट्टियों का निर्माण किया था, जिनकी सहायता से गुणा करने की क्रिया अत्यन्त शीघ्रतापर्वक की जा सकती थी। ये पट्टियाँ जानवरों की हड्डियों से बनी थीं, इसलिए इन्हें नेपियरी बोन कहा गया।

(iii) स्लाइड रूल (Slide Rule)-जॉन नेपियर ने सन 1617 में गणनाओं की लघुगणक (Logarithm) विधि का आविष्कार कर लिया था। इस विधि मदा संख्या का गुणनफल, भागफल, वर्गमूल, आदि किसी चुनी हुई संख्या के घातांकों को जोडकर या घटाकर निकाला जाता है। आज भी बड़ी-बड़ी गणना में, यहां तक कि कम्प्यूटर में भी. इस विधि का प्रयोग किया जाता है। सन् 1620 में जर्मनी के गणितज्ञ विलियम ऑटरेड ने स्लाइड रूल नामक एक एसी वस्तु का आविष्कार किया, जो लघुगणक विधि के आधार पर सरलता से गणनाएँ कर सकती थी। इसमें दो विशेष प्रकार की चिह्नित पट्टियाँ होती हैं, जिन्ह बराबर में रखकर आगे-पीछे सरकाया जा सकता है। इन पर चिह्न इस प्रकार पडे होते हैं कि किसी संख्या की शुन्य (Zero) वाले चिह्न से वास्तविक दूरी उस संख्या के किसी साझा आधार पर लघुगणक के समानुपाती होती है।
स्लाइड रूल का उपयोग वैज्ञानिक गणनाओं में कई शताब्दियों तक किया जाता रहा। बीसवीं शताब्दी के आठवें दशक में पॉकेट कैलकुलेटरों के आने के बाद ही इनका प्रयोग बन्द हुआ है।

(iv) पास्कल का कैलकुलेटर (Pascal's Calculator)–गणनाएँ करने वाला पहला वास्तविक यन्त्र महान फ्रांसीसी गणितज्ञ और दार्शनिक ब्लेज पास्कल ने सन् 1642 में बनाया था। इसे पास्कल का कैलकुलेटर या पास्कल की एडिंग मशीन कहा जाता है। इस मशीन का प्रयोग संख्याओं को जोड़ने और घटाने में किया जाता था। जब पास्कल केवल 18 वर्ष का था, तब अपने टैक्स सुपरिटेंडेण्ट पिता की सहायता के लिए उसने यह यन्त्र बनाया था।

(v) लेबनिज का यान्त्रिक कैलकुलेटर (Mechanical Calculator of Leibnitz)–जर्मन गणितज्ञ लेबनिज ने सन् 1671 में पास्कल के कैलकुलेटर में कई सुधार करके एक ऐसी जटिल मशीन का निर्माण किया, जो जोड़ने तथा घटाने के साथ ही गुणा करने तथा भाग देने में भी समर्थ थी। इस यन्त्र से गणनाएँ करने की गति बहुत तेज हो गयी। इस मशीन का व्यापक पैमाने पर उत्पादन किया गया। अभी भी अनेक स्थानों पर इससे मिलती-जुलती मशीनों का उपयोग किया जाता है।

(vi) बैबेज का डिफरेंस इंजन (Difference Engine of Babbage)–कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के गणित के प्रोफेसर चार्ल्स बैबेज (1792-1871) को आधुनिक कम्प्यूटरों का जनक (पिता) कहा जाता है। गणित के क्षेत्र में उनका पहला महत्त्वपूर्ण योगदान था एक ऐसा यन्त्र बनाना, जो विभिन्न बीजगणितीय फलनों का मान दशमलव के 20 स्थानों तक शुद्धतापूर्वक ज्ञात कर सकता था। इस मशीन को डिफरेंस इंजन कहा जाता था, क्योंकि यह इस सिद्धान्त के आधार पर बनाया गया था कि किसी बीजगणितीय बहुघातीय फलन (Polymial) में आस-पास के दो मानों का अन्तर सदा नियत रहता है।

(vii) बैबेज का एनालिटिकल इंजन (Analytical Engine of Babbage)-अपने डिफरेंस इंजन की सफलता और उपयोगिता से प्रेरित होकर चार्ल्स लैबेज ने एक ऐसे यन्त्र की पूरी रूपरेखा (Design) तैयार की जो आजकल के कम्प्यूटरों से आश्चर्यजनक समानता रखती है। इस मशीन को एनालिटिकल इंजन कहा गया। इस प्रस्तावित मशीन के पाँच प्रमुख भाग थे

1. इनपुट इकाई–आँकड़ों को ग्रहण करने के लिए।
2. स्टोर–आँकड़ों तथा निर्देशों को संग्रहीत या भण्डारित करने के लिए।
3. मिल–अंकगणितीय क्रियाएँ करने के लिए।
4. कंट्रोल-स्टोर तथा मिल में संख्याओं और निर्देशों के आवागमन के लिए
5. आउटपुट इकाई–परिणाम छापने के लिए।

(viii) जेकार्ड्स लूम (Jacquard's Loom) फ्रांस (1804 ई.) में इस यन्त्र का आविष्कार हुआ। जैसेफ मैरीजेकार्ड् ने खोज की।
इस मशीन को विशेषता थी
 1.पंचकाई के उपयोग से सूचना और निर्देशों को कोडित किया जाता था।
2. यह पंचकार्ड में कोडित सूचना तथा निर्देशों का समूह एक प्रोग्राम के रूप में कार्य करता था।

(ix) होलेरिथ सेनास टेबुलेदर (hollerinch Census Tabulator)--

  • अमेरिका (1880 ई.) में इस मशीन का आविष्कार हुआ।
  • डॉ. हर्मन होलेरिथ इस मशीन के आविष्कारक थे। ।
  • जनगणना कार्य के लिए इस मशीन का आविष्कार हुआ।
  • यान्त्रिक इस कम्पनी को मशीनें होती थीं।
(x)एटानासोक बेरी कम्प्युटर (ABC)
  • 1937 ई. में इस मशीन का आविष्कार हुआ।  
  • डॉ. जॉन वी, एटानासोफ तथा क्लीफार्ड बेरी इस मशीन के आविष्कारक थे।
(xi) एनिएक (ENIAC-Econic Numental Integrated Calculator) से विश्व का प्रथम इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर एनिऐक है।
  • अमेरिका (1946 ई.) में इस मशीन का आविष्कार हुआ है।
  • आधुनिक कम्प्यूटर का प्रोटोटाइप Mark-1 को माना जाता है। (vi) (xii)यूनिवैक-1(UNIVAC-1) 
  • 1951 ई. में इस कम्प्यूटर का विकास हुआ।
  •  Universal Automatic Computer यूनिवैक को कहा जाता है।
  • • कम्प्यूटर को प्रथम  पीड़ी के इस मशीन में गुण हैं।
 हार्डवेयर के आधार पर वर्गीकरण

 (i) प्रथम  पीढी (First Generation) (1942-1955 AD)

  • इस पीढी के कम्प्यूटरों में वैक्यूम  ट्यूबो का प्रयोग किया जाता था।
  • इस पीढी का समय मोटे तौर पर सन् 1946 से 55 तक माना जाता था। ।
  • उस समय वैक्यूम  ट्यूब ही एकमात्र इलैक्ट्रॉनिक पुर्जा था जो उपलब्ध होता था।
  • इस पीढी के कम्प्यूटर आकार में बहुत बड़े होते थे।
(ii) दूसरी पीढी(Second Generation) (1955-1965 AD)

  • इस पीढी के कम्प्यूटरों का समय सन् 1955 से 1965 तक माना जाता है।
  • दूसरी पीढी के कम्प्यूटर की गति और संग्रहण क्षमता भी तेज थी।
  • इससे पहले हो अमेरिका को बैल लैबोरेटरी ने ट्रांजिस्टर की खोज कर ली थी।
  • इस पीढी के अन्य कम्प्यूटर थे-आई.बो. एम(IBM).-1602, आई बी एम-7094-1, सी डी  सी,3600 आर सो ए. 501 univac 1107 आदि।।
(iii) तीसरी पीढी (Third Generation) (1965-1975 AD)

  • इस पीढी के कम्यूटरों का समय सन् 1965 से 1975 तक माना जाता है।
  • इनमें एकीकृत परिपथों या चित्रों का उपयोग किया जाता था।
  • इस पीढी के कम्प्यूटर आकार में छोटे होने के साथ-साथ सस्ते भी थे।
(iv) चौथी पीढ़ी (Fourth Generation)
  • इनमें बिजली की खपत बहुत कम होती है।
  • इस पीढी के कम्प्यूटरों का समय सन् 1975 से 1990 तक माना जाता है।
  • रैम को क्षमता में वृद्धि से समय को बचत हुई तथा कार्य अत्यन्त  तीव्र गति से होने लगा।
(v) पाँचवी पीढी (Fifth Generation) 

  • सन् 1990 के बाद के समय में ऐसे कम्प्यूटरों के निर्माण का प्रयास चल रहा है।
  • जिनमें कंप्यूटिंग की ऊंची क्षमताओं के साथ-साथ तर्क करने निर्णय लेने तथा सोचने का भी समर्थय हो।
  • वैज्ञानिकों का दावा है पंचम पीढ़ी के कंप्यूटर मानव के दिमाग की तरह होंगे।
 विशेष एवं सामान्य उद्देश्य के कम्प्यूटर्स 

(i) विशेष उद्देश्य के कम्प्यूटर्स (Special Purpose Computer) ।
  • ये ऐसे कम्प्यूटर होते हैं, जो किसी विशेष कार्य के लिए ही तैयार किये जाते हैं।
  • उस कार्य की आवश्यकता के अनुसार ही उसमें सी.पी.यआदि आन्तरिक अवयव तथा बाहरी उपकरण जोड़े जाते हैं
 (ii) जनरल परपज कम्प्यूटर (General Purpose Computers)
  •  इसका प्रयोग किसी विशेष कार्य के लिए नहीं होता है।
  •  यह कम्प्यूटर एक से अधिक कठिनाइयों को दूर करने में सक्षम होते हैं।
  • इनका उपयोग साधारण अकाउण्टिंग से लेकर जटिल अनुरूपण तथा पूर्वानुमान में होता है।
कार्य पद्धति के आधार पर वर्गीकरण
(i) डिजिटल कम्प्यूटर (Digital Computer)
  •  इनकी गणना 0 या 1 से निरूपित की जाती है।
  •  यह डिजिटल कम्प्यूटर आँकड़ों को इलेक्ट्रॉनिक पल्स के रूप में व्यक्त किया जाता है।
  •  यह आधुनिक डिजिटल कम्प्यूटर में द्विआधारी पद्धति प्रयुक्त होती है।
 (ii) एनालॉग कम्प्यूटर (Analog Computer)
  • कम्प्यूटर में विद्युत के एनालॉग रूप का उपयोग किया जाता है।
  • इसकी गति धीमी होती है।
(iii) हाइब्रिड कम्प्यूटर (Hybrid Computer)
  •  यह कम्प्यूटर डिजिटल तथा एनालॉग का मिश्रित रूप है।
  •  इनमें इनपुट और आउटपुट एनालॉग रूप में व्यक्त होता है।
(iv) प्रकाशीय कम्प्यूटर (Optical Computer)
  • पाचवी पीढ़ी के कम्प्यूटरों के रूप में इस प्रकार के कम्प्यूटर बनाए जा रहे हैं जिनमें एक अवयव को दूसरे से जोड़ने का कार्य ऑप्टिकल फाइबर के तारों से किया जाता है।
 (v) एटॉमिक कम्प्यूटर (Atomic Computer)
  • ऐसे एटॉमिक कम्प्यूटर की खोज की जा रही है जो कुछ विशेष प्रोटीन अणुओं को एकीकृत परिपथ में बदलते हैं।
आकार के आधार पर वर्गीकरण 

(i) मेनफ्रेम कम्प्यूटर Mainframe Computer)
  • इसमें कार्य करने की क्षमता और गति अत्यन्त तीव्र होती है।
  • उपयोग–बैंकिंग, अनुसन्धान, रक्षा, अन्तरिक्ष, आदि के क्षेत्र में।
(ii) मिनी कम्प्यूटर (Mini Computer)
  • मिनी कम्प्यूटर का आकार मेनफ्रेम से काफी छोटा होता है।
  • इन पर एक साथ कई लोग काम कर सकते हैं।
  • उपयोग–कम्पनी, यात्री, आरक्षण, अनुसन्धान, आदि में।
(iii) माइक्रो कम्प्यूटर (Micro Computer)
  • माइक्रो कम्प्यूटरों में प्रोसेसर के रूप में माइक्रो प्रोसेसर का प्रयोग किया जाता है।
  • इनमें इनपुट के लिए की-बोर्ड और आउटपुट देखने के लिए मॉनीटर का प्रयोग किया जाता है।
  • उपयोग–व्यावसायिक रूप में, घरों में, मनोरंजन, चिकित्सा, आदि के क्षेत्र में।
(iv) पर्सनल कम्प्यूटर (Personal Computer)
  • यह कम्प्यूटर आकार में बहुत छोटे होते हैं।
  •  इसे इण्टरनेट से भी जोड़ा जा सकता है।
(v) लैपटॉप (Laptop)
  • लैपटॉप पर्सनल कम्प्यूटर की तरह ही कार्य करता है।
  • CPU, Monitor, Keyboard, Mouse तथा अन्य ड्राइव भी इसमें संयुक्त होते हैं।
 (vi) पामटॉप (Palmtop)
  • इस कम्प्यूटर का आकार बहुत छोटा होता है।
  • इसे हथेली पर रखकर प्रयोग किया जाता है।
(vii)सुपर कंप्यूटर (super computer)
  • यह कंप्यूटर विश्व का सर्वाधिक शक्तिशाली कंप्यूटर है
  • विश्व में प्रथम सुपर कंप्यूटर 1976 ईस्वी में cray 1 के रिसर्च कंपनी द्वारा विकसित हुआ था
भारत में सुपर कंप्यूटर

भारत का प्रथम सुपर कंप्यूटर  फ्लो सोल्वर था जिसे नेशनल एयरोनॉटिकल लेबोरेटरी (NAI) ने विकसित किया था।

CDAC(Centre for development of Advanced computing)
भारत में सुपर कंप्यूटर के विकास में यह सबसे महत्वपूर्ण संस्था है। इसके द्वारा विकसित सुपर कंप्यूटर है परम ,परम टेन थाउजेंड, परम पदम ,परम  अन्नत ,परम युवा आदि
C DOT
संस्था ने चिप्स (CHIPPS)नामक सुपर कंप्यूटर का विकास किया
DRDO
इस  संगठन ने अनुराग इकाई ने PACE नामक सुपर कंप्यूटर का विकास किया
BARC
मुंबई स्थित इस संस्था ने अनुपम सीरीज के सुपर कंप्यूटर का विकास किया
TATA
टाटा ने एक्रा नामक सुपर कंप्यूटर का विकास किया

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